लब्ध प्रतिष्ठित पंडित मुन्नालाल जी रांधेलिया न्यायतीर्थ का जन्म विक्रम संवत 1950 की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को बंडा तहसील के एक गांव पाटन में सिंघई पद से विभूषित संभ्रांत रांधेलिया गोत्रीय श्री बंशीधर एवं राधाबाई के घर जन्म लिया। पाटन ग्राम जहां उनके वंशजों द्वारा बनवाया मंदिर तथा पाड़ागाह द्वारा निर्मित एक भव्य मंदिर भी है। मंदिर का निर्माण संवत 1945 में उनके वंशजों द्वारा छने पानी से किया गया था। इनकी पिता के मृत्यु के पश्चात इन्होंने पाटन का परित्याग कर सागर के अंचल का सहारा लिया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बिनेका ग्राम में हुई और धार्मिक शिक्षा बंडा ग्राम में ग्रहण की। संवत 1960 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सागर आ गए और वह स्वयं प्राइवेट तौर से धार्मिक शिक्षण लेते रहे तथा दिगंबर जैन बड़े मंदिर में स्थित रात्रि शाला में अध्यापन करते रहे। सौभाग्यवश स्वनाम धन्य पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी सागर पधारे। वह बुंदेलखंड के अज्ञान अंधकार को सदा के लिए ज्ञान के प्रकाश से भर देने को संकल्पित थे। उन्होंने सन 1905 में श्री सत्तर्क सुधा तरंगिडी दिगंबर जैन पाठशाला की स्थापना की। विद्यार्थी मुन्नालाल जी इस पाठशाला के प्रथम छात्र थे इसके बाद चार छात्र और प्रविष्टि, कुल पांच छात्रों से इस पाठशाला का प्रारंभ हुआ।
सन 1911 में विद्यार्थी मुन्नालाल जी ने व्याकरण प्रथमा की परीक्षा बांकीपुर पाटन (बिहार) से पास की। सन 1913 में व्याकरण माध्यमा का प्रमाण पत्र प्राप्त कर वह उसी वर्ष गोपालदास दिगंबर जैन सिद्धांत विद्यालय मुरैना जिला ग्वालियर चले गए और वहां सिद्धांत का अध्ययन करने लगे।
मुरैना विद्यालय से जैन सिद्धांत शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण कर सागर आ गए। 1917 में अपने न्यायतीर्थ की परीक्षा पास की। आप जैन समाज के प्रथम न्यायतीर्थ थे। और पूज्यपाद गणेश प्रसाद जी के आदेश श्री सत्तर्क सुधा तरंगिणी जैन पाठशाला मोराजी में प्रथम धर्मअध्यापक हो गए। विद्वान होने के साथ समाज में संगठन की रुचि ने उन्हें रचनात्मक कार्य करने को प्रेरित किया। पंडित मुन्नालाल जी भी ऐसे ही व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने बिखरी हुई समाज को संगठित करने के लिए उन्होंने गोलापूर्व दिगंबर जैन महासभा की स्थापना की। इस सभा के माध्यम से उन्होंने सामाजिक बुराइयों को दूर कर भ्रातृ - भाव को जनमानस में भरने का अथक प्रयास किया। उक्त संगठन के वह बहुत वर्षों तक मंत्री और समाज का पथ प्रदर्शन करते रहे। सन 1918 में दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र नैनागिरी जी में उक्त महासभा का वृहद अधिवेशन कराया वहा जल मंदिर की नीव पंडित गणेश प्रसाद जी वर्णी के सानिध्य में रखवाई। श्री दौलतराम वर्णी दिगंबर जैन पाठशाला का संचालन किया।
वे ज्ञान के पुजारी तथा विद्यत्ता के धनी थे। पंडित मुन्नालाल रांधेलिया श्री गणेश दिगंबर जैन संस्कृत विद्यालय सागर के कई वर्षों तक मंत्री रहे तथा उनके मंत्रितत्वकाल में संस्था ने आशातीत उन्नति की। विद्यार्थी को धार्मिक शिक्षण दिलाने के साथ उसे आजीविका उपार्जन करने के योग्य बनाना उनका प्रमुख लक्ष्य था।
पंडित मुन्नालाल जी रांधेलिया विद्वान होने के साथ ही सुयोग्य लेखक भी थे। उन्होंने गोलापूर्व जैन मासिक पत्र तथा जैन प्रभात नामक पत्रिका का भी संपादन किया। सन 1916 में अपने वृहद स्वयंभू स्तोत्र की भाषा टीका की। सन 1921 में विद्यालय में अध्यापक कार्य करते हुए पंडित दौलतराम जी की मृत छहढाला की हिंदी टीका मन मोहिनी टीका के नाम से लिखी थी।
सन 1930 में स्थापित दिगंबर जैन महिला आश्रम सागर की ट्रस्टी बने। बुंदेलखंड प्रांतीय दिगंबर जैन महासभा के मंत्रीपद पर रहकर सामाजिक उत्थान के कार्य किए। पंडित मुन्नालाल रांधेलिया का जीवन बहुत ही संयम पूर्ण रहा। सन 1939 से ही वह ब्रह्मचारी का पालन निरतिचार रूप से करते आए हैं। दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र नैनागिरी के वार्षिक मेला के समय उपस्थित दिगंबर जैन सभा ने आपको वर्णी पद से अलंकृत कर अपनी श्रद्धा एवं सम्मान उन्हें अर्पित किया।
सन 1918 से 1921 तक सत्तर्क तरंगिणी जैन पाठशाला के प्रधानाध्यापक पद पर कार्य करते रहे। सन 1938 से 1948 तक वह गणेश दिगंबर संस्कृत विद्यालय के मंत्री रहे तथा संस्था के सभापति भी रहे। सन 1944 में पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी को इसरी से सागर लाने के लिए अथक प्रयत्न किया तथा उनके सम्मान में एक विशाल समारोह का आयोजन किया जिसमें लगभग ₹100000 की राशि जैन विद्यालय सागर को संग्रहित की। श्री गुरुदत्त दिगंबर जैन उदासीन आश्रम ड्रोडगिरी के वह अधिष्ठाता रहे। श्री गौराबाई दिगंबर जैन ट्रस्ट सागर की वह ट्रस्टी होने के साथ ही मंत्री रहे। न्यायालय द्वारा 10 वर्षों तक आनरेरी मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्त रहे। सन 1968 में मध्य प्रदेश दिगंबर जैन व्रती संघ की स्थापना की तथा पंचकल्याणक महोत्सव के अध्यक्ष का पद सुशोभित किया। आपकी समाधि मरण 2 मई 1993 को सागर में हुआ।
आपके कृतित्व में १ जैन शिक्षा सोपान (१९२४) २ जैन विवाह विधि (१९१६) ३ श्रावक का नित्यकर्तव्य (१९१९) ४ धर्म के विषय में अनेक भूलें (१९६७) ५ जैन धर्म प्रकाशक 4-भाग (१९९१) ६ मोक्ष मार्ग किरण (१९९२) इत्यादि हैं।
आपके टीकाओं में १ बृहस्त्रयभूस्तोत्र: (आचार्य सामंत भद्राचार्य १९१६) २ हिंदी छहढाला (पंडित प्रवर दौलतराम १९२९) ३ पुरुषार्थ सिद्धउपाय: (आचार्य अमृताचार्य १९६९) ४ तत्वसार टीका (१९७८) ५ प्रवचनसार दर्पण (१९८०) इत्यादि हैं।